IIT जैसी संस्थाओं से छात्रों का बाबा बनना सही या गलत?
हेलो दोस्तों,
आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जो बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी है | जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रयागराज में महाकुम्भ चल रहा है | इस महाकुम्भ में देश विदेश से लाखों लोग और तरह तरह के लोग आ रहे हैं | ऐसे में हमने देखा है कि IIT बॉम्बे से एक एयरोस्पेस इंजीनियरिंग भी वहां बाबा के रूप में आये हैं वो इंजीनियरिंग छोड़ के अध्यात्म की तरफ चले गए थे | अब वो अध्यात्म की तरफ क्यूँ गए हैं हम इस पर बात नहीं करेंगे हम इसपर बात करेंगे कि IIT जैसी संस्था के छात्र अगर बाबा बनते हैं तो देश का विकास कैसे होगा हम दूसरे देशों से आगे कैसे बढ़ेंगे, अपने लोगों को अपने बच्चो को भविष्य में क्या देंगे ?
बेशक अध्यात्म से हम आत्मा को जानना और उसका अनुभव करना.सीखते हैं, यह एक दर्शन है, चिंतन-धारा है और विद्या है, अध्यात्म से व्यक्ति को अपने अस्तित्व के बारे में पता चलता है अध्यात्म से व्यक्ति को आंतरिक रूप से मज़बूत बनाया जाता है, अध्यात्म से ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, आपसी भेदभाव जैसी भावनाएं खत्म होती हैं. अध्यात्म से व्यक्ति भौतिकता से परे जीवन का अनुभव करता है लेकिन क्या होगा अगर सभी लोग अध्यात्म का रास्ता अपना लेंगे ? क्या अध्यात्म और विकास दोनों को साथ में लेकर चला जा सकता है?
यह पोस्ट किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने के लिए नहीं है बस कुछ सवाल हैं जिनके जवाब मै आप लोगो से जानना चाहता हूँ | आप लोग इसपर क्या सोचते हैं कमेंट करके जरुर बताएं |
सर गीता की पुस्तक का एक श्लोक है (कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ ) कर्म करो और फल की चिंता मत करो सबका इस जीवन में कुछ ना कुछ कर्म निश्चित हैं कॉन किस लिए बना हैं किसको क्या प्राप्त होगा यह सब निश्चित हैं .हम कितना भी प्रयास कर ले जो हमारे कर्म में होगा और जो हमारा होगा वन्हा प्रकृति हमें स्वयं लेकर जाएगी.
अध्यात्म दर्शन और आधुनिक तकनीकी विकास को एक निश्चित सीमा तक ही साथ लेकर चल सकते हैं।
अध्यात्म दर्शन और आधुनिक तकनीकी विकास को एक निश्चित सीमा तक ही साथ लेकर चल सकते हैं।